फिल्म ‘बारह बाई बारह’ काशी के उस समय की कहानी है जब लोग बदलते वक्त को थामे रखना चाहते थे। हिंदी सिनेमा में यह फिल्म इसलिए खास है क्योंकि इसने बदलती सामाजिक स्थिति को सही समय पर फिल्माया है। आज के समय में हिंदी सिनेमा समाज से दूर होता जा रहा है, लेकिन लेखक-निर्देशक गौरव मदान की फिल्म ‘बारह बाई बारह’ उस दौर को कैमरे में कैद करती है जब वाराणसी को एक बड़े धार्मिक पर्यटन स्थल में बदलने की कोशिश हो रही थी।
बहुआयामी संघर्ष की कहानी
फिल्म ‘बारह बाई बारह’ वाराणसी शहर के एक हिस्से की कहानी है, जहां लोग अपनी पुश्तैनी जमीन और रोजगार को बचाने के लिए परेशान हैं। सभी को उम्मीद है कि कोई इस डूबती नाव को बचाने वाला मिलेगा। कहानी सीधे मुद्दों पर बात नहीं करती, लेकिन इसके अलग-अलग हिस्से दर्शकों के मन में विचारों के बीज बोते रहते हैं। असली कहानी दर्शकों को खुद समझनी और अपने विचारों से पोषित करनी है। बाहर से आने वाले पर्यटकों की सुविधा के लिए वर्षों से पूजी जा रही जमीन के कुलदेवता और कुलदेवियों के स्थान खतरे में हैं। संघर्ष सिर्फ विरासत बचाने और आधुनिकता अपनाने का नहीं है, बल्कि मानवीय मूल्यों और राजनीति में बदलते कारोबार का भी है।
गंगा पुत्र की कहानी
फिल्म ‘बारह बाई बारह’ में वाराणसी का सूरज चिंता के बादलों में छिपा हुआ नजर आता है। मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार के लिए आए शवों की फोटो खींचने वाले सूरज को ‘डेथ फोटोग्राफर’ कहा जाता है। मोबाइल के आने से उसकी रोजी-रोटी छिन गई है। वह शादी की तस्वीरें खींचने की भी कोशिश करता है, लेकिन लोग उस पर भरोसा नहीं करते। सूरज की पत्नी साड़ी में पीको फाल लगाकर घर चलाने की कोशिश में जुटी है। दूसरी तरफ, सूरज का पिता परबत, घर से भागी बेटी के अपराध बोध से शर्मिंदा होकर घर में ही पड़ा रहता है। कहानी धीरे-धीरे आगे बढ़ती है। काशी में गिराए जा रहे मकानों की आवाजें पृष्ठभूमि में सुनाई देती रहती हैं। फिल्म में चतुराई से एक जगह टीवी पत्रकार रवीश कुमार की रिपोर्ट भी दिखाई गई है।
डिजिटल दौर में फिल्म पर बनी कहानी
फिल्में जो अपने समय को सहेजती हैं, उनका सबसे बड़ा फायदा ये है कि भविष्य में जब भी कोई दर्शक इन्हें देखेगा, तो उसे उस समय के संदर्भ समझने में आसानी होगी। निर्देशक गौरव मदान ने अपनी पहली फीचर फिल्म में ये सामाजिक जिम्मेदारी अच्छी तरह निभाई है। फिल्म के सिनेमैटोग्राफर सन्नी लाहिड़ी भी लेखन टीम का हिस्सा हैं। गौरव और सन्नी की जोड़ी ने फिल्म की धीमी गति को सुपर 16 एमएम कैमरे पर ऐसे पकाया है, जैसे धीमी आंच पर खाना पकता है। ये फिल्म मसाला फिल्मों के शौकीनों के लिए नहीं है, लेकिन कलात्मक या समानांतर सिनेमा के प्रेमियों के लिए ये फिल्म करीब दो घंटे का अच्छा अनुभव है। सिनेमा और समाज के बीच पुल बनाने की ऐसी कोशिशों का स्वागत होना चाहिए।
भूमिका ने पाई अभिनय की नई जमीन
फिल्म ‘बारह बाई बारह’ में सूरज बने ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने अपने किरदार की हताशा और बेचैनी को बखूबी निभाया है। उनका साथ अभिनेत्री भूमिका दुबे ने बहुत अच्छे से दिया है। वह अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में पूरी तरह सफल रही हैं। उनके अभिनय की नई जमीन पर मेहनत और हुनर को पहचानने वाले निर्देशक सही फसल उगा सकते हैं। उनका भविष्य उज्ज्वल दिखता है।
फिल्म ’12वीं फेल’ के बाद हरीश खन्ना ने फिर अपने अभिनय से प्रभावित किया है। गीतिका विद्या ने मानसी के किरदार में ठहरी हुई जिंदगी में हलचल ला दी है। खासतौर से आठ साल बाद होली के दिन उनकी घर वापसी के समय का दृश्य बहुत प्रभावशाली है।
तकनीकी तौर पर फिल्म बहुत शानदार नहीं है, लेकिन कुछ चीजें अधपकी ही अच्छी लगती हैं।
Movie Review बारह बाई बारह
कलाकार ज्ञानेंद्र पांडे , भूमिका दुबे , हरीश खन्ना , गीतिका विद्या ओहलयान , आकाश सिन्हा और आशित चटर्जी, आदि
लेखक गौरव मदान और सन्नी लाहिड़ी
निर्देशक गौरव मदान
निर्माता गौरव मदान , सन्नी लाहिड़ी और जिग्नेश पटेल
रिलीज 24 मई 2024
रेटिंग 3.5/5
ट्रेलर- बारह बाई बारह