विजय राज और आशुतोष राणा जैसे कलाकारों को ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने एक नई पहचान दी है। ये अभिनेता, जो कभी हिंदी सिनेमा के हाशिये पर थे, अब मुख्य भूमिकाओं में दिखाई दे रहे हैं, जो वास्तव में समय का कमाल है। इसी परिवर्तन का नतीजा है कि 2024 में जियो सिनेमा पर एक ऐसी कहानी प्रदर्शित हो रही है, जिसका मुख्य मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद अप्रासंगिक हो चुका है। यह कहानी जेरी पिंटो के उपन्यास पर आधारित है, जिसकी पृष्ठभूमि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 है। यह उपन्यास जनवरी 2018 में प्रकाशित हुआ था, और उसी साल सितंबर में सर्वोच्च न्यायालय ने इस धारा को निरस्त कर दिया था।
वेब सीरीज ‘मर्डर इन माहिम’ की कहानी उसके पहले के कालखंड पर आधारित है। जैसा कि नाम से पता चलता है, यह कहानी मुंबई के माहिम रेलवे स्टेशन के शौचालय में हुए एक निर्मम हत्या से शुरू होती है। कातिल बेहद क्रूर है, उसने शव की आंतें बाहर निकाल दी हैं। इंस्पेक्टर झेंडे, जो अपने पिता से झगड़ कर निकले हैं, को इस हत्या की सूचना मिलती है और वे तफ्तीश शुरू करते हैं। उनके साथ एक नई भर्ती हुई युवती पुलिसकर्मी भी है। दो दरोगा, जय और विजय की तरह, कहानी में समय-समय पर दिखाई देते हैं। कहानी का दूसरा सिरा एक पूर्व पत्रकार से जुड़ता है, जिसे शक है कि कहीं उसका बेटा समलैंगिक तो नहीं है। यह कहानी पुरानी मुंबई की गलियों में घूमते हुए बार-बार उसी चौराहे पर पहुंचती है, जहां इसका अंत होता है।
इस सीरीज में न तो कलाकारों का अदाकारी के प्रति कोई उत्साह नजर आता है और न ही निर्देशक ने इसे सैकड़ों अन्य अपराध धारावाहिकों से अलग करने का कोई खास प्रयास किया है। निर्देशक विजय आचार्य ने ‘मर्डर इन माहिम’ को यथार्थवादी बनाए रखने की पूरी कोशिश की है, जिसके चलते उनकी टीम बार-बार मुंबई के उन इलाकों में घूमती रहती है, जहां की चकाचौंध की बातें सुनकर कोई वहां जाना नहीं चाहता। दृश्यों में इतनी वास्तविकता है कि दर्शक को लगता है जैसे वे बदबू को महसूस कर सकते हैं। आठ एपिसोड तक इस सीरीज को देखना एक चुनौती बन जाता है। दूसरी ओर, सीरीज के किरदारों की चुनौती अपने काम के साथ-साथ अपने घरेलू समस्याओं को सुलझाने की है। यह एक बहुत ही पारंपरिक फॉर्मूला बन चुका है, जिसे ओटीटी पर प्रसारित होने वाली क्राइम वेब सीरीज में अक्सर देखा जाता है।
वेब सीरीज ‘मर्डर इन माहिम’ दिखाने से ज्यादा बताने पर जोर देती है। जब झेंडे की सहकर्मी अपनी पसंद के बारे में खुलासा करती है, तो इसे प्रभावी बनाने के लिए दृश्य नहीं, बल्कि संवादों का उपयोग किया जाता है। कहानी बहुत सपाट है, पटकथा उससे भी हल्की है, और निर्देशन के बारे में क्या कहें, आचार्य ने जो मिला, बस उसे ही आगे बढ़ा दिया। अभिनय के मामले में, इस सीरीज में कम से कम तीन ऐसे कलाकार हैं, जिनके अभिनय के नए पहलुओं को उभारने का मौका था। आशुतोष राणा का किरदार भी अच्छा है। उनके ‘ऑपरेशन’ के कारण उनके दोस्त झेंडे के पिता की नौकरी चली गई थी। जब मामला गंभीर होता है, तो दोनों दोस्त फिर से साथ आते हैं। लेकिन झेंडे एक पुलिस वाला है, इसलिए वह अपने दोस्त पर भी शक कर सकता है। मनमुटाव दूर करने के लिए वे समुद्र तट पर जाते हैं, जबकि वे कहीं और भी बातचीत कर सकते थे। इसके पीछे का कारण लेखक और निर्देशक ही जानते हैं।