Haamare Baarah Review: दमदार कहानी, लेकिन अन्नू कपूर की विवादित फिल्म कैसी है?

‘Haamare Baarah Review’ आखिरकार 21 जून 2024 को रिलीज हो रही है, जिसे 7 जून को रिलीज होना था। फिल्म से जुड़ी कंट्रोवर्सी के कारण सोशल मीडिया पर ‘हमारे बारह’ काफी चर्चा में है। अगर आप इस वीकेंड ‘चंदू चैंपियन’ और ‘मुंज्या’ छोड़कर ‘हमारे बारह’ देखना चाहते हैं, तो ये रिव्यू जरूर पढ़ें।

अन्नू कपूर की फिल्म ‘हमारे बारह’ थिएटर में रिलीज हो चुकी है। इस फिल्म को देखने का इरादा नहीं था, लेकिन कंट्रोवर्सी के कारण सोचा, क्यों न देखा जाए। मुंबई की बारिश में हम स्क्रीनिंग पर पहुंचे। लगभग 3 घंटे इंतजार के बाद फिल्म शुरू हुई, क्योंकि सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट नहीं मिला था। उम्मीद थी फिल्म बोरिंग होगी, लेकिन ऐसा नहीं था। फिल्म एंगेजिंग है, कुछ खामियां जरूर हैं, लेकिन यह बुरी नहीं है। इसे एक मौका दिया जा सकता है।

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Hamare Baarah
Hamare Baarah

लखनऊ के नवाब साहब (अन्नू कपूर) को 11 बच्चों के बाद भी 12वें बच्चे की उम्मीद है। वो सरकारी नियमों की परवाह नहीं करते, उनका मानना है कि देश का विकास सरकार की जिम्मेदारी है, और परिवार का विकास मर्द की। वो अपने बच्चों को प्यार करते हैं, लेकिन उन्हें स्कूल-कॉलेज की अनुमति नहीं दी है, न ही बेटियों को अपने पसंदीदा काम करने की आजादी। जब डॉक्टर उनकी दूसरी पत्नी की 5वीं प्रेग्नेंसी की खबर देते हैं, तो वो खुश हो जाते हैं, जबकि यह प्रेग्नेंसी उनकी पत्नी के लिए जानलेवा हो सकती है। इस्लाम में अबॉर्शन को गुनाह मानते हुए, नवाब साहब अबॉर्शन नहीं कराना चाहते। उनकी बेटी अल्फिया अपनी छोटी मां की जान बचाने के लिए कोर्ट जाने का फैसला करती है। आगे क्या होगा, जानने के लिए आपको थिएटर में जाकर ‘हमारे बारह’ देखनी होगी।

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“देश की जनसंख्या 140 करोड़ को पार कर चुकी है और हमने जनसंख्या के मामले में चीन को भी पीछे छोड़ दिया है। हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में बड़े परिवारों को लेकर जनसंख्या का एक खास हिस्सा नेताओं के निशाने पर भी रहा। फिल्म ‘हमारे बारह’ इसी चुनावी एजेंडा पर आधारित है, लेकिन पहले सेंसर बोर्ड और फिर बॉम्बे हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चली सुनवाइयों ने निर्माताओं को तनाव में डाल दिया। फिल्म के चारों निर्माताओं की सोच स्पष्ट थी – उन्हें इस फिल्म से सनसनी पैदा करनी थी, और बीते महीने भर की सुर्खियों से यह साफ भी हो गया कि वे अपने मकसद में सफल रहे। लेकिन, फिल्म? फिल्म उनकी इसी सनसनीखेज सोच में डूब गई। एक अच्छी कहानी ने ओवरएक्टिंग और खराब निर्देशन के चलते इस दौर की एक बेहतरीन मुस्लिम सोशल ड्रामा फिल्म बनने का मौका खो दिया।

सोशल ड्रामा बनने की टूटी उम्मीद

हिंदी सिनेमा में मुस्लिम सोशल ड्रामा का एक ऐसा सुनहरा दौर रहा है कि हर दौर के हर बड़े सितारे ने इन फिल्मों में काम किया। ‘मुगले आजम’ से लेकर ‘चौदहवीं का चांद’, ‘मेरे हुजूर’, ‘महबूब की मेहंदी’, ‘एक नजर’, ‘निकाह’, ‘तवायफ’, ‘सनम बेवफा’ और ‘वीर जारा’ तक देश के अलग-अलग कालखंडों में मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी में बदलती रवायतों पर फिल्में बनीं और खूब चलीं भी। नेटफ्लिक्स पर रिलीज सीरीज ‘हीरामंडी’ की सफलता का राज भी यही है। देश की एक बड़ी आबादी अब भी इस तरह की फिल्मों को पसंद करती है और जब यह कमी मुंबई का सिनेमा पूरा नहीं कर पाता है, तो यह दर्शक पाकिस्तानी धारावाहिकों की ओर रुख करते हैं। इस संदर्भ में, फिल्म ‘हमारे बारह’ ने अपने कालखंड का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज बनने का मौका खो दिया है।

कहानी बहुविवाह और अधिक बच्चों की

एक वृद्ध कव्वाल अपनी बेटी की उम्र की लड़की से दूसरी शादी करता है। उसके साथ शारीरिक संबंध बनाते समय गर्भनिरोधक का उपयोग नहीं करता। उसकी पहली पत्नी की बेटी अपनी सौतेली मां की जान बचाने के लिए गर्भपात की मांग करती है। लगातार बच्चों को जन्म देने की उसकी ज़िद अदालत तक पहुंचती है। इस बेटी और उसकी सौतेली मां में घनिष्ठ मित्रता है। बेटी विद्रोही स्वभाव की है और सही-गलत में अंतर जानती है। घर का एक बेटा अपने पिता का विरोध करता है। दूसरा बेटा कव्वाली में अपना भविष्य देखता है और अपनी पत्नी व बेटी से दूर हो चुका है, पिता के कहने पर। फिल्म ‘हमारे बारह’ एक गंभीर विषय पर आधारित है। इससे भी अधिक गंभीर विषय पाकिस्तानी धारावाहिकों में उठाए जाते रहे हैं, लेकिन वहां विवाद नहीं होता क्योंकि मुस्लिम समाज का एक बड़ा हिस्सा प्रगतिशील है और खुद को बदल रहा है।

कमल चंद्रा का बेहद कमजोर निर्देशन

फिल्म ‘हमारे बारह’ में एक म्यूजिक रियलिटी शो का किस्सा भी है, जिसमें बेटी की भागीदारी पर वह पिता बवाल मचाता है जिसकी खुद की रोजी-रोटी कव्वाली से चलती है। दूसरी बेटी शायरा है, उसके लिखे शेर पिता अपनी कव्वालियों में शबनम के नाम से पढ़ता है। कहानी का ताना-बाना उत्कृष्ट है। पटकथा मूल कहानी पर केंद्रित रखते हुए सहायक कहानियों को दर्शकों के लिए रोचक बनाती है। फिल्म अपने संवादों के कारण पटरी से उतरती है। अन्नू कपूर को उर्दू का अच्छा ज्ञान है। इसलिए उन्होंने अपने किरदार के संवादों में काफी बदलाव किए हैं। शूटिंग के दौरान निर्देशक पर हावी होने का उनका पुराना शौक यहां भी नजर आता है और कमल चंद्रा उनके सामने झुकते दिखाई देते हैं। अन्नू कपूर अभिनय के माहिर हैं लेकिन उन्हें नियंत्रित करना मुश्किल नहीं है, बशर्ते निर्देशक अपनी कला में निपुण हो।

महिला किरदारों का मज़ाक बन गया

अगर फिल्म ‘हमारे बारह’ की इसी कहानी और पटकथा को गंभीरता से किसी अच्छे निर्देशक और कुछ बेहतरीन महिला कलाकारों के साथ बनाया गया होता, तो यह इस साल की अवार्ड जीतने वाली फिल्म हो सकती थी। मुख्य महिला कलाकारों में अश्विनी कलसेकर को छोड़कर बाकी किसी का अभिनय इतना दमदार नहीं है कि दर्शकों को बांधे रख सके। अश्विनी के चेहरे का रंग-रूप भी बार-बार बदलता रहता है। उम्र छुपाने की उनकी सारी कोशिशें बेकार जाती हैं। कव्वाल की बेगम बनीं इशलिन प्रसाद भी अपने शौहर बने अन्नू कपूर की तरह ज्यादा अभिनय करती दिखती हैं। सौतेली मां की जान बचाने की जिद में जुटी बेटी के किरदार में अदिति भटपहरी की कोशिशें अच्छी हैं, लेकिन उन्हें सही निर्देशन नहीं मिला। पहली कव्वाली में अपनी अदाकारी से आकर्षित करने वाले दोनों छोटे बच्चों का भी फिल्म में सही इस्तेमाल नहीं हो सका।

राहुल बग्गा, परितोष और समथान ने बचाई फिल्म

निर्देशक कमल चंद्रा की कमजोरियों से हल्की पड़ी फिल्म ‘हमारे बारह’ को तीन पुरुष कलाकारों ने सहारा देने की पूरी कोशिश की है। रिपोर्टर बने पार्थ समथान का किरदार ज्यादा विस्तार नहीं पाता और न ही उनकी बाकी जिंदगी को कहानी में शामिल करने की कोशिश हुई है, लेकिन उनका परदे पर आना एक तनावभरी कहानी में राहत लाता है। एक खास धर्म का चेहरा बनाकर अन्नू कपूर को शुरू से एक खास छवि के साथ पेश किया गया है, लेकिन उनकी बात न मानने वाले बेटे के रूप में राहुल बग्गा ने खासा प्रभावित किया है। परिवार की जरूरत के हर मौके पर मौजूद रहने वाला यह बेटा ही आखिर में अपने पिता को भी सच्चाई का सामना करने पर मजबूर कर देता है। दूसरे बेटे के किरदार में परितोष त्रिपाठी ने भी अच्छा काम किया है। अपने सख्तमिजाज पिता की छाया बनने की कोशिश में अपनी पत्नी और बेटी को खोने के बाद बदले इस किरदार को परितोष ने अच्छी तरह निभाया है। परितोष ने यह भी दिखाया है कि जब कलाकार बंधे-बंधाए ढांचे से बाहर आता है तभी कुछ खास कर पाता है। काश! यही बात फिल्म के चारों निर्माताओं के लिए भी कही जा सकती। फिल्म का प्रीमियर कान फिल्म फेस्टिवल में नहीं हुआ है। यह बात अन्नू कपूर भी इन्हें समझाते रहे हैं, लेकिन फिल्म के पोस्टर पर यह दावा अब तक बना हुआ है। फिल्म की स्क्रीनिंग कान फिल्म फेस्टिवल के दौरान फिल्म बाजार में हुई थी।

Movie Review:-हमारे बारह
कलाकार:-अन्नू कपूर , इशलिन प्रसाद , अदिति भटपहरी , अश्विनी कलसेकर , मनोज जोशी , राहुल बग्गा , परितोष त्रिपाठी और पार्थ समथान आदि
लेखक:-राजन अग्रवाल , कमल चंद्रा , पीयूष सिंह और सूफी खान
निर्देशक:-कलम चंद्रा
निर्माता:-रवि एस गुप्ता , बीरेंद्र भगत , संजय नागपाल और शिव बालक सिंह
रिलीज:-21 जून 2024
रेटिंग:-2.5/5
Movie Trailer:- link

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