Baby Play Review: पूजा और रवि का दमदार अभिनय, फिल्म जगत की सच्चाई

कान फिल्म फेस्टिवल में इस साल जिस एक हिंदी फिल्म की सबसे ज्यादा चर्चा हुई, वह विजय तेंदुलकर की लिखी फिल्म ‘मंथन‘ है। जब यह फिल्म पहली बार रिलीज हुई थी, तेंदुलकर को इस फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखक का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था। ‘शांतता कोर्ट चालू आहे‘, ‘घासीराम कोतवाल‘ और ‘सखाराम बाइंडर‘ जैसे प्रसिद्ध नाटकों के लेखक विजय तेंदुलकर को 1970 में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला था। उनके नाटकों का संदेश इतना मजबूत है कि फिल्म के छात्रों के लिए उनके नाटकों का सामाजिक संदेश 21वीं सदी के 24वें साल में भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना आज से लगभग पचास साल पहले था। मुंबई फिल्म उद्योग की कड़वी सच्चाइयों को खोलते हुए विजय तेंदुलकर के नाटक ‘Baby‘ के हिंदी रूपांतरण का मुंबई में शुक्रवार से शुरू हुए सृजन संगम नाट्य महोत्सव के पहले दिन मंचन हुआ। इस नाटक में नाट्यशास्त्र के सभी रस हैं, जो किसी नाटक को पूरा बनाते हैं।

वंचितों और शोषितों की कहानी: Baby

Baby Play Review
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द क्ले थियेटर कंपनी के नाट्य महोत्सव सृजन संगम के तहत हुए नाटक ‘बेबी‘ का मंचन इस बात के लिए महत्वपूर्ण रहा कि इसे बहुत सीमित संसाधनों के साथ जिस क्रिएटिव अड्डा नामक स्थान पर प्रस्तुत किया गया, वह आराम नगर का इलाका संघर्षशील कलाकारों का वर्षों से केंद्र रहा है। नाटक में काम करने वाले कलाकार भी इस मंचन के माध्यम से अभिनय की कला को सीखने की कोशिश कर रहे हैं। जिन्होंने यह नाटक पढ़ा है, उनके लिए कहानी परिचित है। और जिन्होंने इसे नहीं पढ़ा है, वे भी मुंबई फिल्म जगत की कड़वी सच्चाइयों से परिचित होंगे। यह कहानी Baby नाम की एक युवती की है, जिसका संघर्ष किसी भी आत्मा को छू सकता है। यह सिनेमा के हाशिये पर जीवन बिताने वाले बेसहारा, लाचार और शोषित लोगों की कहानी है।

चमकती दुनिया की दमघोंटू सच्चाई

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नाटक ‘बेबी‘ का मुख्य पात्र बेबी ही है। वह एक अच्छे घर की बेटी है जिसने अपना सब कुछ अभिनय को समर्पित कर दिया है। उसका मन भी और शरीर भी। उसे पुरुष को खुश करने का सिर्फ एक ही तरीका पता है, और वह है उसके सामने आते ही अपना सब कुछ उस पर लुटा देना। एक ऐसी मानसिक उत्तेजना उसमें बस चुकी है, जिसमें उसे पता भी नहीं चलता कि यह उत्तेजना सुख की है, दुख की है, करुणा की है या फिर अपमान, घृणा और उपेक्षा की। उसकी नीयत पर उसका विश्वास बार-बार दिखता है, लेकिन फिर उसके जीवन में एक नई उम्मीद दिखती है। उसे लगता है कि वह आजाद हो सकती है। उसे सहारा मिलता है फिल्म जगत में काम करने वाले एक सहायक निर्देशक का जो उसे हीरोइन बनने के सपने दिखाता है। उपन्यासों की काल्पनिक दुनिया में खोई रहने वाली बेबी उसे भी अपनी किस्मत मानकर सब कुछ देने को तैयार हो जाती है।

सीमित संसाधनों में रवि शर्मा का निर्देशन

निर्देशक रवि शर्मा ने विजय तेंदुलकर के मराठी नाटक ‘Baby’ का जो हिंदी रूपांतरण नाट्य महोत्सव सृजन संगम के लिए तैयार किया है, उसमें स्थान और संसाधनों की सीमित व्यवस्थाएं भी एक पात्र की तरह महसूस होती हैं। और देखा जाए तो स्थान और संसाधन ही ‘बेबी’ के जीवन का प्रमुख हिस्सा भी हैं। वह जहां रहती है, वह जगह उस शिवप्पा की है जिसने उसका सात दिन, सात रात तक बलात्कार किया था। जेल से छूटकर आया भाई पूछता है, ‘क्या तुमको किसी ने यहां रखा है?’ संभ्रांत परिवार की एक बेटी के लिए ‘रखैल’ शब्द जब पहली बार भाई अपनी बहन के लिए बोलता है तो Baby बनी पूजा मिश्रा के चेहरे पर दिखने वाली घुटन और दर्द दर्शक भी महसूस करते हैं।

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यही है सही चुनाव, Baby!

नाटक का मुख्य किरदार निभाने वाली पूजा मिश्रा की हिम्मत की दाद देनी होगी जिन्होंने एक छोटे से स्थान में अपनी अभिनय प्रतिभा को एक शोषित महिला के दर्द के साथ जीवंत कर दिया। हालांकि, इस नाटक के कई दृश्यों में उन्हें साथी कलाकारों की शारीरिक हिंसा का भी सामना करना पड़ा। बदलते समय में बिना शारीरिक पीड़ा के भी इस तरह के दृश्य सिर्फ अभिनय की कला के बल पर किए जा सकते हैं, लेकिन इन दृश्यों में भी पूजा ने पूरे साहस और आत्मविश्वास के साथ दर्शकों पर अपना असर छोड़ा। शिवप्पा की कैद में छटपटाती बेबी अगले ही पल अपने भाव बदलकर एक मनमोहक रूप धारण करती है, इन दृश्यों में पूजा मिश्रा का अभिनय अपनी छाप छोड़ता है।

रवि चौहान की उम्दा अदाकारी

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नाटक ‘बेबी’ के राघव, बेबी, पिंटू और शिवप्पा जैसे किरदार जहां बेबी को अपनी आलोचना और निंदा करने पर मजबूर कर देते हैं, वहीं नाटक का एक किरदार कर्वे इस कहानी को जीवन के दूसरे रंग दिखाता है। कर्वे फिल्म कंपनी में सहायक निर्देशक है। वह फिल्म के सेट पर मौजूद लोगों की पृष्ठभूमि, उनकी क्षेत्रीय पहचान और उनके काम करने के तरीकों पर तंज भी कसता है, लेकिन एक एक्स्ट्रा के तौर पर काम करने वाली Baby को हीरोइन बनने के सपने भी दिखाता है। कर्वे के किरदार में रवि चौहान का अभिनय इस नाटक का दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु है। Baby और कर्वे जब अकेले मिलने की योजना बनाते हैं और इस मिलन की रात के जो भी दृश्य होते हैं, वे पूजा शर्मा और रवि चौहान के आपसी तालमेल की ऐसी धुरी बनाते हैं जिस पर धीमा चल रहा नाटक तेजी से घूम उठता है।

Movie Review:-बेबी (हिंदी नाटक)
कलाकार:-पूजा मिश्रा , इंद्र सिंह राजपूत , रवि शर्मा , रवि चौहान और आदित्य सिंह
लेखक:-विजय तेंदुलकर
निर्देशक:-रवि शर्मा
निर्माता:-द क्ले थियेटर कंपनी
मंचन:-7 जून 2024
रेटिंग:-3/5

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